एक बार फिर, "बस, बहुत हो गया" यही भावना थी जो 13 दिसंबर 2024 और 13 जनवरी 2025 को ब्रुसेल्स में हुई कार्रवाई के दौरान व्यक्त की गई थी, जो 'मितव्ययिता योजनाओं' के खिलाफ थी, जो एक नई संघीय सरकार के गठन के लिए वार्ता की मेज पर हैं, जो अब छह महीने से चल रही है। पहले ये योजनाएँ मीडिया 'लीक' के ज़रिए उजागर होती थीं; आज ये कोई सार्वजनिक रहस्य नहीं रह गई हैं। यूनियनें "पिछले 80 सालों के सबसे कठोर उपायों" की बात करती हैं। योजनाबद्ध हमले मज़दूर वर्ग के सभी वर्गों को प्रभावित करेंगे। जबकि निजी कंपनियों में श्रमिकों को बड़े पैमाने पर नौकरी से निकाला जाएगा (2024 तक 27,000) और स्वचालित वेतन सूचकांक पर...
अमेरिका में सम्पन्न हुए राष्ट्रपति चुनाव में भारी बहुमत से जीते ट्रम्प, व्हाइट हाउस में पुनः विराजमान हो गये हैं. उनके समर्थकों की द्रष्टि में वह एक अपराजेय हीरो, चुनाव में धांधली, न्यायिक जाँच पड़ताल, व्यवस्था से टकराव और गोलियों का मुकाबला तथा हर बाधा पर, पार पा लेने की सामर्थ्य रखते हैं. ट्रम्प की एक चमत्कारी छवि, उनके कानों से बहता खून तथा गोली लगने के वाबजूद उनकी तनी हुई मुट्ठियाँ के साथ आसमान की और टकटकी लगा कर देखना, उन्हें इतिहास के पन्नों में दर्ज कराता है. लेकिन उनकी प्रतिक्रिया से जाग्रत प्रशंसा के पीछे, यह हमला सबसे बढ़ कर, इस चुनाव अभियान की एक शानदार अभिव्यक्ति था, जो हिंसा,...
16 नवंबर को आईसीसी ने ‘अमेरिकी चुनावों के वैश्विक प्रभाव’ विषय पर एक ऑनलाइन सार्वजनिक बैठक आयोजित की।...
प्रावरण पत्र...
5 अगस्त 2024 को दर्जनों छात्रों ने बांग्लादेश की भगोड़ी प्रधानमंत्री शेख हसीना के आवास की छत पर तालियाँ बजाईं। वे पाँच सप्ताह तक चले संघर्ष की जीत का जश्न मना रहे थे, जिसमें 439 लोगों की जान चली गई और आखिरकार मौजूदा सरकार को उखाड़ फेंका गया। लेकिन वास्तव में यह किस तरह की ‘जीत’ थी? क्या यह सर्वहारा वर्ग की जीत थी या पूंजीपति वर्ग की? ट्रॉट्स्कीवादी समूह रिवोल्यूशनरी कम्युनिस्ट इंटरनेशनल (RCI, पूर्व में इंटरनेशनल मार्क्सिस्ट टेंडेंसी) ने स्पष्ट रूप से दावा किया कि बांग्लादेश में क्रांति हो चुकी है और प्रदर्शन इस बिंदु पर पहुँच चुके हैं जहाँ वे “बुर्जुआ ‘लोकतंत्र’ के दिखावे की निंदा कर सकते...
"इंटरनेशनल ग्रुप ऑफ द कम्युनिस्ट लेफ्ट" (IGCL) फिर से मुखबिरी कर रहा है।...
भारत के संसदीय चुनाव (लोकसभा) इस साल अप्रैल से जून तक हुए। सर्वहारा वर्ग को, अन्य जगहों की तरह, इन चुनावों से कुछ भी उम्मीद नहीं थी, जिसके नतीजे से सिर्फ़ यह तय होता है कि पूंजीपति वर्ग का कौन सा हिस्सा समाज और उसके द्वारा शोषित श्रमिकों पर अपना वर्चस्व बनाए रखेगा। ये चुनाव ऐसी पृष्ठभूमि में हुए जिसमें पूंजीवाद का पतन मानवता को और अधिक अराजकता में धकेल रहा है क्योंकि इसका सामाजिक विघटन तेज़ हो रहा है, जिससे कई संकट (युद्ध, आर्थिक, सामाजिक, पारिस्थितिक, जलवायु, आदि) पैदा हो रहे हैं जो एक दूसरे से जुड़कर और मजबूत होकर और भी विनाशकारी भंवर को हवा दे रहे हैं। भारत में, अन्य जगहों की तरह, "शासक...